बुधवार, 18 नवंबर 2009

नैतिक पतन और कला-संस्कृति-साहित्य की जिम्मदारियाँ

रोज़ाना ही मासूम बच्चों के साथ दर्दनाक, हृदय विदारक, वीभत्स दैहिक अत्याचार, यौन शोषण का एक ना एक किस्सा अखबारों की सुर्खी में होता है, सोच कर ना केवल शरीर के रोंगटें खड़े हो जाते हैं बल्कि घिन भी आती है। भारतीय समाज नैतिक पतन के गर्त में कितनी गहराई तक जा धँसा है रोजमर्रा की यह घटनाएँ इसका एक जीवन्त उदाहरण है। आए दिन छोटी-छोटी दुधमुँही बच्चियों के साथ वासना का घिनौना खेल, बलात्कार की घटनाएँ फिर उनकी हत्याएँ देश भर में देखने-सुनने को मिल रहीं हैं, जो समाज के नैतिक ताने-बाने की जर्जरता को बारम्बार चीख-चीखकर प्रदर्शित कर रहीं है। बावजूद इसके देश के तमाम प्रबुद्ध लोग, तथाकथित बुद्धिजीवी, समाजसेवी, राजनीतिज्ञ आँख-कान-मुँह बंद किये बैठे हुए हैं, यह भारी चिंता का विषय है।
भारतीय समाज के इस तरह नैतिक पतन के दलदल में फँस जाने और निरन्तर भीतर धँसते चले जाने के कारणों की सतही तौर पर पड़ताल कर कोई भी तुरंत यह कह सकता है कि इलेक्ट्रानिक मीड़िया और फिल्मों के जरिये घर-घर में बेरोकटोक पहुँचाई जा रही अश्लीलता की संस्कृति ऐसी घटनाओं के लिये मुख्य रूप से जिम्मेदार है, परन्तु मात्र इतना ही कहना एक अत्यंत निम्न स्तर का सामान्यीकरण होगा। दरअसल इसके पीछे मौजूद तमाम राजनैतिक-सामाजिक- सांस्कृतिक-एवं आर्थिक कारणों की एक वृहत जाँच-पड़ताल की जाना आज के समय की एक बेहद महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
देश में कला-संस्कृति-साहित्य एवं शिक्षा प्रणाली में व्याप्त जनविरोधी, अवैज्ञानिक चिंतनधारा के प्रभाव के कारण, करोड़ों-करोड़ आम-जनसाधारण एवं नैतिक मूल्यों को जागृत रखने, सामाजिक प्रगति और विकास को सुनिश्चित करने वाले इन महत्वपूर्ण साधनों के बीच जो अनंत दूरी पैदा हुई है, वह भी बहुत हद तक इस पतन के लिये जिम्मेदार है। कला-संस्कृति-साहित्य में वर्तमान में जो तथाकथित धाराएँ बह रही हैं उनका आम-जनसाधारण के जीवन संघर्षों से कुछ भी लेना- देना नहीं है, इसलिए वर्तमान में इस क्षेत्र में सृजन के नाम पर जो कुछ भी चल रहा है वह सब जन-साधारण की जीवन शैली के लिहाज से निरर्थक है। किसी समाज के कला-संस्कृति-साहित्य के प्रतिमान समाज को निम्नतर नैतिक मूल्यों से सावधान करते रहने एवं उच्चतम मूल्यबोधों की स्थापना के लिए निरन्तर सजग रहने का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य ही नहीं करते तो फिर उससे संबंधित सारे प्रयोजन निरर्थक ही हैं। वर्तमान समय में जो कुछ भी आधुनिक (तथाकथित) रचा जा रहा है वह मात्र घृणित व्यक्तिवाद, व्यक्तिगत कुंठा एवं असामजस्यपूर्ण व्यक्तिवादी बिम्बों-प्रतीकों का एक अजीब घोल-मट्ठा है जो आम-जनसाधारण तो दूर, अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोगों के भी समझ से बाहर है। समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित करने वाले फिल्म एवं टी.व्ही. मीडिया के जरिये भी एक अवास्तविक संसार, प्रदूषित मूल्यों एवं फूहड़ मनोरंजन की चटनी चटाकर भारतीय समाज को नष्ट कर देने का अमानवीय षड़यंत्रकारी आयोजन बड़े जोर-शोर से चल रहा है लेकिन कला-संस्कृति-साहित्य के पुरोधागण समाज की इस चिताजनक हालत पर जरा भी व्यथित नजर नहीं आते।
एक समय में प्रेमचन्द-शरतचन्द्र ने अपने कालजयी साहित्य के जरिये देश के कोने-कोने में आम-जनसाधारण के जीवन में काफी गहराई तक पैठ बनाकर उच्च मूल्यबोधों को बचाए रखने एवं उच्च से उच्चतर मूल्यबोधों के निर्माण और स्थापना के लिये निरन्तर जो जद्दोजहद की, स्वतंत्रता संग्राम के समय हजारों कवियों ने अपने कवित्त से आम-जनसाधारण को जोड़ने का जो महत्वपूर्ण काम किया उस सबसे कोई सबक ना लेकर आज के तथाकथित आधुनिक लेखक-साहित्यकार, कला एवं संस्कृतिकर्मी इसे ’’आदर्शवादी दौर का मुर्दा इतिहास‘‘ कहकर कूढ़ेदान में फेंकने की जुर्रत तो जरूर करते हैं परन्तु निरन्तर नैतिक पतन के इस महापरिदृष्य से अपने समाज को बचाने के लिये कुछ ठोस करने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं करते।
इस तथाकथित प्रबुद्ध तबके को, जिसने आज कला-संस्कृति-साहित्य की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ओढ़ रखी है और जो सामाजिक सच्चाई से मुँह मोड़कर, नैतिकता विहीन पतित आचरण के मौजूदा तांडव को नजरअन्दाज कर, एक निकृष्ठ व्यक्तिवादी मूल्यबोधों के कृतिम रचना-संसार का सृजन करने में मशगूल है, आने वाले समय में इतिहास कभी भी माफ नहीं करेगा। इतिहास उन राजनीतिज्ञों, समाज शास्त्रियों को भी कभी माफ नहीं करेगा जो मौजूदा सामाजिक संकट से अनजान बनकर मात्र अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेकने में लगे हुए हैं। इतिहास हर एक आदमी को चाहे वह किसी भी क्षेत्र से सम्बंध रखता हो, घर-घर में एक निकृष्ठ इंसान, एक बलात्कारी, एक हत्यारा एक दलाल पैदा करने की मौजूदा वस्तुस्थिति को निर्मित करने, उसे पालने-पोसने में बराबरी का हिस्सेदार होने के लिये अवश्य ही जिम्मेदार ठहराएगा।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग दुनिया में स्वागत है।

    नारदमुनि
    भोपाल

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  2. आपके विचार सरोकार रखते हैं. राजनीती को साफ़ करने के लिए नैतिक शक्तियों का प्रवेश जरूरी है.प्रतिकार भी .

    word verification hatalen .is se sirf dikkat aatee hai hasil kuchh naheen hota .

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  3. ----चुटकी----

    चीन पंच

    ओबामा सरपंच,

    भारत के खिलाफ

    शुरू हो गया

    नया प्रपंच।

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