मंगलवार, 23 मार्च 2010

शहीदे आज़म भगतसिंह की याद में (भाग-3)-एक इंकलाब की भारी ज़रूरत है।

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क्या इसी हिन्दुस्तान का चित्र आँखों में लिए हुए भगतसिंह फाँसी पर चढे थे? क्या उनकी कल्पना का हिन्दुस्तान ऐसा ही था? नहीं, बात ऐसी नहीं, भगतसिंह तो बहुत दूर की बात, हिन्दुस्तानी आज़ादी आन्दोलन में अपनी जान की कुरबानी देने वाले किसी भी क्रांतिकारी का सपना हरगिज़ ऐसा नहीं रहा होगा। बल्कि गाँधी जी के नेतृत्व में जो लोग थे उन्होंने भी कभी भारतीय समाज का यह घिनौना सपना कभी नहीं देखा होगा। भगतसिंह का सपना था-‘‘अन्त में समाज की एक ऐसी व्यवस्था जिसमें किसी प्रकार के हड़कम्प का भय ना हो, और जिसमें मजदूर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता दी जाए, और उसके फलस्वरूप विश्व संघ पूँजीवाद के बंधनों, दुखों तथा युद्धों की मुसीबतों से मानवता का उद्धार कर सकें।’’(भगतसिंह)। उनका सपना इस उद्धरण में झलकता है कि -‘‘ क्रांति, पूँजीवाद और वर्गभेदों तथा विशेष सुविधाओं की मौत की घंटी बजा देगी। आज विदेशी और भारतीय शोषण के क्रूर जुए के नीचे कराहते पसीना बहाते तथा भूखों मरते हुए करोड़ों लोगों के लिए वह हर्ष और सम्पन्नता लाएगी। वह देश को उसके पैरों पर खड़ा कर देगी। वह एक नई राज्य व्यवस्था को जन्म देगी। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मज़दूर वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित कर देगी और समाज की जोकों को राजनीतिक शक्ति के आसन से सदा के लिए च्युत कर देगी।’’(भगतसिंह)

ये शब्द हैं उस 23 साल के नौजवान के, कितने शक्तिशाली, कितने वज़नदार कितने साफ साफ......... और आज अपने आप को मार्क्सवादी कहने वाली, तथाकथित नामधारी कम्युनिस्ट पार्टियाँ संसद के अन्दर बैठकर जनता के हितों को ताक पर रख वोटों की राजनीति कीचड़ में लिप्त होकर सौदेबाज़ी में मशगूल हैं। इतना ही नहीं आज ये सभी वामपंथी पार्टियाँ खुलेआम पूँजीपति वर्ग की दलाली पर उतर आई हैं।

बहरहाल, फांसी से पहले भगतसिंह ने कहा था-‘‘ मेरी शहादत हिन्दुस्तानी नौजवानों के भीतर आज़ादी की लौ जलाएगी..........।’’(भगतसिंह) आज के नौजवानों को देखकर लगता है कि कभी इन लोगों ने स्वतंत्रता आन्दोलन के इन महान नौजवानों खुदीराम, भगतसिंह, सुभाष बोस, इनसे कुछ भी सीखने का ज़रा भी प्रयास किया है ? जिस देश के ये ओजस्वी नौजवान कभी पूरी दुनिया में हिन्दुस्तानी युवा वर्ग के प्रतीक हुआ करते थे, आज उस हिन्दुस्तान के नौजवान वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों, शोषण शासन के दुष्चक्र से बिल्कुल बेखबर घोर गैर जिम्मेदाराना तरीके से जीवन यापन किये चले जा रहे हैं। समाज के दुख दर्दों से उन्हें कुछ लेना देना नहीं , महान आदर्शो से उन्हें कोई मतलब नहीं। कुछ घोर असामाजिक हो गए हैं, कुछ कैरियरिस्टिक हो गए हैं, कुछ कुंठित होकर आत्महत्याएँ कर रहे हैं, कुछ ड्रग्स और नशीले पदार्थों के सेवन में अपनी जिन्दगी तबाह कर हरे हैं.......... न उन्हें भगतसिंह याद है ना भगतसिंह की यह बात -‘‘ जिन नौजवानों को कल देश की बागडोर अपने हाथों में लेनी है उन्हें अक्ल के अंधे बनाने की कोशिश की जा रही है। इसका जो परिणाम निकलेगा वह हमें खुद ही समझ लेना चाहिए। हम मानते हैं कि विद्यार्थी का मुख्य काम शिक्षा प्राप्त करना है उसे अपना सारा ध्यान इसी तरफ लगाना चाहिए लेकिन क्या देश के हालातों का ज्ञान और उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना क्या विद्या में शामिल नहीं है ? अगर नहीं तो हम ऐसी विद्या को निरर्थक समझते हैं जो केवल क्लर्की के लिए ली जाए........।’’(भगतसिंह)

आज फिर भगतसिंह के इस आव्हान को याद करने की जरूरत है कि -‘‘ एक इंकलाब की भारी ज़रूरत है। वे पढ़े ज़रूर पढ़े। साथ ही राजनीति का ज्ञान भी हासिल करें और जब जरूरत हो मैदान में कूद पड़ें और ज़िन्दगियाँ इसी काम में लगा दें। अपनी जान इसी काम में दान कर दें। अन्यथा बचने का और कोई उपाय नज़र नहीं आता।’’(भगतसिंह)

आज फिर वह जरूरत आ पड़ी है, राजनीति में कूद पड़ने की ज़रूरत....... मगर राजनीति ऊँचे आदर्शों वाली अर्थात वर्तमान जर्जर समाज व्यवस्था को उखाड़ फेंककर नई समाज व्यवस्था कायम करने के संघर्ष की राजनीति, अर्थात क्रांतिकारी राजनीति ना कि घटिया संसदीय चुनावी राजनीति।

‍‍-समाप्त-

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapse poori tarah sahmat hu. kash aapki baat in satta ke lutere giddado ko bhi samajh aa jaye to kya baat ho.

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  2. जब क्रांति की लहर पर प्रतिक्रांति की लहर हावी होती है और समाज जडत्व का शिकार होता है, उस वक्त इसे तोड़ने के लिए नौजवानों में क्रांति की स्पिरिट पैदा करना नितांत जरूरी होता है. भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान दिवस पर संजीदों लोगों से क्रांति के लिए आह्वान निश्चय ही समय की मांग है.

    जहाँ तक भगत सिंह के बलिदान का संबंध है तो कुछ लोगों को भगत सिंह इसलिए प्रिय है कि उन्होंने अपना जीवन देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया. वर्गों में विभाजित उस वक्त के समाज में देशी बुर्जुआ वर्ग के उद्भव ने गाँधी पैदा किया तो इसके विरुद्ध दूसरे छोर पर मेहनतकश अवाम ने भगत सिंह और उसके क्रांतिकारी साथी. भगत सिंह को उसके सही रूप में पेश करने पर कुछ लोगों को आपत्ति होती है. उनके लिए वे आजादी के लिए जनूनी नौजवानों का एक समूह से बढ़कर कुछ नहीं थे. सतही तौर पर ऐसा लगता है कि इस प्रकार के लोग भगत सिंह और उसके साथियों के प्रति श्रद्धाभाव रखते हों, लेकिन हकीकत यह है कि इस प्रकार का दृष्टिकोण अंतिम तौर पर मौजूदा शोषक वर्ग के दृष्टिकोण की सेवा करता है.

    आज के प्रतिक्रांति के इस दौर में भगत सिंह की क्रांतिकारी विरासत को मेहनतकश अवाम, नौजवान और विद्यार्थियों के बीच ले जाना जरूरी है. इक्कीसवीं शताब्दी का वर्तमान समय नयी सर्वहारा क्रांतियों के अगले चक्र के शुरू होने की पूर्वबेला है, भविष्य की इन नयी समाजवादी क्रांतियों को देने के लिए, भले ही भगत सिंह और उनके साथियों के वैचारिक संघर्ष और कार्य उतने प्रासंगिक न हों जितने उनके समय में थे, लेकिन एक क्रांतिकारी विरासत को आत्मसात करना आज के क्रांतिकारियों का जरूरी कार्य है. सबसे बढ़कर भगत सिंह का बलिदान, एक क्रांतिकारी स्पिरिट के रूप में, इस सदी के क्रांतिकारियों और नौजवानों की हौंसला अफजाई करता रहेगा.

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