यह सच है कि अनुसूचित जातियों-जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिये सरकारी स्तरों पर कड़े कानून होने के बावजूद देश भर में उनपर अगड़ी जाति के प्रभावशाली लोगों के अत्याचार बदस्तूर जारी हैं, लेकिन पिछले कई दशकों से देश में इन जातियों के लिये उपलब्ध आरक्षण की व्यवस्था का लाभ लेकर आगे आए इन पिछड़ों में प्रशासनिक स्तर पर कई ऐसे अधिकारियों की फौज खड़ी हो गई है जो उनके पक्ष में कानून की कड़ाई का लाभ लेकर ऐसी कारस्तानियाँ कर रही है जिससे अनुसूचित जाति के लोगों के प्रति गैर अनुसूचितों की घृणा और भड़क रही है।
बहुत से लोगों के मुँह से ऐसे कई किस्से सुनने को मिलते हैं जिसमें गैर अनुसूचित वर्ग के लोगों को अनुसूचित वर्ग के प्रभावशाली लोगों से घोर प्रताड़ना और अत्याचार का शिकार होना पड़ा क्योंकि इन लोगों का यह मानना है कि युगों-युगों से उँची जातियों ने हमारा शोषण किया है, अब हमारी बारी है।
शासकीय सेवाओं में कई ऐसे अनुसूचित वर्ग के अधिकारी हैं जो अपने अधिनस्थ सामान्य वर्ग के कर्मचारियों-अधिकारियों को विशेषकर ‘ब्राम्हण’ वर्ग के लोगों को किसी ना किसी चक्रव्यूह में फँसाकर अपने पाँव छुलवाने में प्रचंड आनंद और आत्मसंतुष्टी पाते हैं। प्रशासन में ऐसे भी कई अनुसूचित वर्ग के अधिकारी हैं जो एक अभियान की तरह दूसरे वर्गों के अधिकारियों/कर्मचारियों को मौका-बेमौका सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। कुछ तो दमन और अत्याचार का ऐसा दुष्चक्र चलाते हैं कि भारी असंतोष और कुंठा के कारण उनके अधिनस्थ्ज्ञ सामान्य वर्ग वालों का जीवन दूभर हो जाता है। प्रश्न है कि क्या अनुसूचित जातियों जनजातियों को आरक्षण-सरंक्षण का लाभ क्या इसलिए दिया गया है कि वे शोषण और अत्याचार का एक नया अध्याय रचें ?
लाचारी यह है कि अनुसूचित वर्ग के बदमिजाज़ अफसरों के खिलाफ शिकायत होने के बावजूद उनके खिलाफ त्वरित कार्यवाही करने का कोई रास्ता नहीं है क्योंकि उनके मामलों में सात गलतियाँ बाकायदा माफ की जाती हैं और ढीढ अफसरों के औसान और बढ़ते जाते हैं। संविधान का मूल स्वर यदि समानता है तो किसी को भी ऐसे अत्याचार, दमन और अपमान की छूट नहीं दी जानी चाहिये चाहे वह सामान्य वर्ग के लोग हो या अनुसूचित वर्ग के।
भारतीय समाज में जाति प्रथा का बोलबाला होने के कारण ऊँची जाति के कई लोग अब भी तथाकथित निचली जातियों के प्रति पूर्वाग्रह ग्रस्त हैं और अपने कुविचारों से वे मौका बेमौका अनुसूचित जाति के लोगों को आहत करते रहते हैं, मगर अनुसूचित वर्गों के प्रति सद्भाव रखने वाले, उन्हें समानता का दर्जा देने वाले गैर अनुसूचित वर्गों के प्रगतिशील लोगों को भी यदि बदले की भावना से ग्रस्त अनुसूचित वर्गों के लोगों से डरे रहकर, भय और आतंक के साए में जीना पड़े तो फिर अनुसूचित वर्गों को दिये गये विशेषाधिकारों के बारे में एक बार फिर से सोचने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
देश भर में यह देखा जाता है कि स्वार्थ पूरा ना होने पर अनुसूचित जाति के लोग सामान्य वर्ग के लोगों पर अत्याचार का आरोप लगाकर अनुसूचित जाति जनजाति एक्ट में फंसाने से भी नहीं चूकते। ऐसी स्थिति में ताकतवर हो गये अनुसूचित जाति के लोगों पर विशेष नज़र रखने की ज़रूरत है ताकि वे बिना बात किसी को परेशान करने से बाज आएँ। हाँ, इसके साथ ही अनुसूचित जातियों के प्रति घृणा का भाव रखने वालों की भी, व्यापक सामाजिक आंदोलन और कानून के माध्यम से लगाम कसे रखने की आवश्यकता तो है ही।