आज हनुमान जयंती है। हनुमान जी एक ऐसे वानर देवता के रूप में जाने जाते हैं जो ना केवल हवा में उड़ लेते हैं बल्कि एक समूचा पहाड़ भी अपनी हथेली पर साध लेते हैं। वे ना केवल मनुष्यों की तरह बोलते हैं बल्कि गुस्से में आकर सूर्य नारायण तक को निगल लेते हैं। और भी ना जाने क्या क्या!
असंभव कारनामों की ऐसी अनेक कथाओं की पृष्ठभूमि में जो महज़ कल्पनाओं के सहारे खड़े किये गए एक चरित्र का द्योतक है, हनुमान जी के प्रति अंध श्रद्धा-भक्ति का हमारे देश में चलन बहुत पुराना है, विज्ञान का यहाँ कोई काम ना तो पहले था और ना अब है। अब तो सारे तर्क ताक पर रखकर युवाओं में हनुमान जी की लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है इससे आधुनिक शिक्षा में पनपे वैचारिक खोखलेपन का भी पर्दाफाश होता है।
वानर, मानवों का पुरखा होने के बावजूद मानवों की तरह का सामाजिक रूप से उन्नत प्राणी नहीं हो सकता। मानव समाज में घुल-मिलकर कुछ आदतें ज़रूर सीख सकता है परन्तु मनुष्यों की तरह बातें नहीं कर सकता। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को मात देकर मात्र इच्छाशक्ति से उड़ने की क्षमता तो अब तक पृथ्वी के सबसे उन्नत जीव ‘मनुष्य’ तक में पैदा नहीं हुई है, तब एक वानर में यह शक्ति कैसे पैदा हो सकती है। इतनी तरक्की के बावजूद दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है जो एक समूचे पहाड़ को उठाकर जस का तस दूसरे स्थान पर पहुँचा दे, तब कोई सीमित शक्ति वाला वानर कैसे यह काम कर सकता है।
फिर, सूर्य को निगलना..............!!!!! पृथ्वी से कुई गुणा बड़ी एक ठोस संरचना को निगलना, जिसका ताप करोड़ों किलोमीटर दूर पृथ्वी पर 40-50 डिग्री तक पहुँचने के साथ ही साथ मनुष्यों और समस्त प्राणियों को हैरान परेशान कर देता है, दुनिया भर के वैज्ञानिक जिसके करीब तक पहुँचाने लायक धातु का विकास अभी तक नहीं कर पाए हैं, ऐसे भस्म कर देने वाले अग्नि पिंड को लड्डू की तरह निगल लिया जाना असंभव ही नहीं कल्पनातीत है। मगर यह भारत भूमि है......... यहाँ देवता प्राकृतिक नियम कायदों, सत्यों से ऊपर उठकर अतिप्राकृतिक शक्तियों के मालिक हैं, वे कुछ भी कर सकते हैं। भारतीयों से यह अपेक्षित है कि वे श्रद्धा, आस्था के बीच में वैज्ञानिक तथ्यों को बिल्कुल भी ना लाएँ।
वैज्ञानिक विकास के अभाव में प्रकृति की अबूझ पहेलियों से उलझे तत्कालीन मनुष्यों ने हज़ारों साल पहले, अपनी अनोखी कल्पनाओं के आधार पर जो काव्य, कथाएँ सृजित की थीं, उन्हें एक युग विशेष का साहित्य ना मानकर ईश्वरीय शक्ति के चमत्कार के रूप में जीवन भर अपने सीने से लगाए रखना, अंध-श्रद्धा अंध-भक्ति अंध-विश्वास इसी को तो कहते हैं।
असंभव कारनामों की ऐसी अनेक कथाओं की पृष्ठभूमि में जो महज़ कल्पनाओं के सहारे खड़े किये गए एक चरित्र का द्योतक है, हनुमान जी के प्रति अंध श्रद्धा-भक्ति का हमारे देश में चलन बहुत पुराना है, विज्ञान का यहाँ कोई काम ना तो पहले था और ना अब है। अब तो सारे तर्क ताक पर रखकर युवाओं में हनुमान जी की लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है इससे आधुनिक शिक्षा में पनपे वैचारिक खोखलेपन का भी पर्दाफाश होता है।
वानर, मानवों का पुरखा होने के बावजूद मानवों की तरह का सामाजिक रूप से उन्नत प्राणी नहीं हो सकता। मानव समाज में घुल-मिलकर कुछ आदतें ज़रूर सीख सकता है परन्तु मनुष्यों की तरह बातें नहीं कर सकता। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को मात देकर मात्र इच्छाशक्ति से उड़ने की क्षमता तो अब तक पृथ्वी के सबसे उन्नत जीव ‘मनुष्य’ तक में पैदा नहीं हुई है, तब एक वानर में यह शक्ति कैसे पैदा हो सकती है। इतनी तरक्की के बावजूद दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है जो एक समूचे पहाड़ को उठाकर जस का तस दूसरे स्थान पर पहुँचा दे, तब कोई सीमित शक्ति वाला वानर कैसे यह काम कर सकता है।
फिर, सूर्य को निगलना..............!!!!! पृथ्वी से कुई गुणा बड़ी एक ठोस संरचना को निगलना, जिसका ताप करोड़ों किलोमीटर दूर पृथ्वी पर 40-50 डिग्री तक पहुँचने के साथ ही साथ मनुष्यों और समस्त प्राणियों को हैरान परेशान कर देता है, दुनिया भर के वैज्ञानिक जिसके करीब तक पहुँचाने लायक धातु का विकास अभी तक नहीं कर पाए हैं, ऐसे भस्म कर देने वाले अग्नि पिंड को लड्डू की तरह निगल लिया जाना असंभव ही नहीं कल्पनातीत है। मगर यह भारत भूमि है......... यहाँ देवता प्राकृतिक नियम कायदों, सत्यों से ऊपर उठकर अतिप्राकृतिक शक्तियों के मालिक हैं, वे कुछ भी कर सकते हैं। भारतीयों से यह अपेक्षित है कि वे श्रद्धा, आस्था के बीच में वैज्ञानिक तथ्यों को बिल्कुल भी ना लाएँ।
वैज्ञानिक विकास के अभाव में प्रकृति की अबूझ पहेलियों से उलझे तत्कालीन मनुष्यों ने हज़ारों साल पहले, अपनी अनोखी कल्पनाओं के आधार पर जो काव्य, कथाएँ सृजित की थीं, उन्हें एक युग विशेष का साहित्य ना मानकर ईश्वरीय शक्ति के चमत्कार के रूप में जीवन भर अपने सीने से लगाए रखना, अंध-श्रद्धा अंध-भक्ति अंध-विश्वास इसी को तो कहते हैं।