बुधवार, 3 मार्च 2010

हम ही हैं वो लोग- साहिर लुधियानवी को समर्पित सत्या शिवरमन की कविता

हम ही हैं वो लोग

हम ही है वो लोग जिनका हमें था इन्तज़ार
हम ही है वो ख़्वाब जो हमने देखा था।

वो सुबह जो कभी आई नहीं उसका क्या ग़म
हमारे हाथों से जो बरसती हैं रोशनी
हमारे कदमों की तेजी से उठा है उजाला
हमारी ही मेहनत से जलते हैं चिराग
और ये सब किसी सूरज से कम तो नहीं ।

हम ही हैं वो लोग जिनका हमें था इन्तज़ार
हम ही है वो ख़्वाब जो हमने देखा था।

दलालों से कहो राह दिखाने की जुर्रत ना करें
राह बनाते है हम, तय करते खुद दिशा अपनी
आखें खुली हैं, ना रहा पहले का बहरापन
चलते भी हैं हम अपने ही पैरों पर
अब रोकना हमें कहीं मुमकिन नहीं।

हम ही हैं वो लोग जिनका हमें था इन्तज़ार
हम ही हैं वो ख़्वाब जो हमने देखा था।

जब धरती नग़में गाएगी, और अम्बर झूम के नाचेगा
जहाँ इन्सानों की कीमत सिक्कों से ना तोली जाएगी
वो दुनिया जिसमें ना होगी भूख, प्यास, ना कोई कमी
वो सुबह हम बनाएँगे, तो सुबह जरूर आएगी
वो सुबह हम बनाएँगे, ये हमको है पूरा यकीन।

हम ही हैं वो लोग जिनका हमें था इन्तज़ार
हम ही है वो ख़्वाब जो हमने देखा था।

सत्या शिवरमन
(साहिर लुधियानवी को समर्पित )

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