शुक्रवार, 11 जून 2010

क्या ये जनद्रोही नहीं हैं ??????????

सभी चित्र दैनिक भास्कर से साभार
घड़ियाली आँसू
कौन लेकर रहेगा इंसाफ ?26 साल पहले ये सब कहाँथे जब भोपाल के चंद कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, समाजसेवियों ने गैस पीड़ितों के कंधे से कंधा मिलाकर उनके लिए संघर्ष किया, पुलिस प्रशासन का अत्याचार सहा, लाठियाँ खाई, जेल तक गए। तब ये सारे घड़ियाली आँसू बहाने वाले लोग कहाँ थे ?
मध्यप्रदेश की सत्ताधारी पार्टी और उसके सांसद विधायक तत्कालीन कांग्रसी नेताओं को कटघरे में खड़ा कर उनके मज़े ले रहे हैं। सच्चाई यह है कि उनके दामन भी उतने ही दागदार हैं जितने कांग्रसियों के। इन 26 सालों में केन्द्र में और मध्यप्रदेश में भी भाजपा की सरकार लम्बे समय तक रहीं, उन्होंने इस मुदृदे पर क्या किया यह भी जगजाहिर है।  हर बार चुनाव आने पर उन्होंने पूरे भोपाल को मुवावज़ा बटवाने का सपना दिखाकर वोट हासिल किए।
अब जब कि सारी बातों का खुलासा हो गया है क्या शिवराज सरकार में नैतिक साहस है कि वे सरकारी मशीनरी के उन तमाम  अफसरों और राजनीतिज्ञो के ऊपर शिकंजा कसे जिन्होने भोपाल की जनता के साध विश्वासघात किया ?

 
 और भी ना जाने कौन कौन ? 

क्या ये जनद्रोही नहीं हैं ??????????
इन सब को सज़ा कौन देगा ???

गुरुवार, 10 जून 2010

ये हैं नाइंसाफी के जवाबदेह

भोपाल के गैस पीड़ितों ने उनके साथ हुई नाइन्साफी के लिए इन लोगों को जिम्मेदार ठहराया है
(फोटो दैनिक भास्कर से साभार)

क्या क्या हुआः-
-घनी आबादी के बीच में अमानक स्तर का कारखाना चलाने देने, और खतरनाक, पाबंदी वाले उत्पादनों का कारोबार बेराकटोक चलते रहने देने के लिए आज तक किसी को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास राज्य और केन्द्र सरकार की तरफ से नहीं हुआ।जबकि इस मामले में दोषी औ?ोगिक इन्सपेक्टर से लेकर तत्काली मुख्यमंत्री तक सबको कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।

-हादसे के बाद गैस पीड़ितों की किसी भी प्रकार की कानूनी लड़ाई को लड़ने का अधिकार अपने हाथ में लेकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने गैस पीड़ितों के हाथ काट दिए।

- गैस त्रासदी  की विभिषिका को वास्तविकता से बेहद कम आंका जाकर अदालत के सामने प्रस्तुत किया गया।ताकि यूनीयन कार्बाइड सस्ते में छूटे।

-मरने वालों और प्रभावितों की संख्या को काफी कम दिखाया गया।ताकि यूनीयन कार्बाइड को कम से कम आर्थिक नुकसान हो।

-गैस के ज़रिए फैले ज़हर के बारे में जानकारियाँ छुपा कर रखी गई, कारण गैसपीड़ितों के शरीर पर पडने वाले दूरगामी परिणामों संबंधी समस्त शोधों को छुपाकर रखा गया ताकि यूनीयन कार्बाइड को लाभ पहुँचे।

-हादसे के बाद दोषियों को बचाने की भरपूर कोशिश की गई।जिसमें एंडरसन को बचाने का अपराध तो जगजाहिर हो गया है।

भोपाल की आम जनता को मुआवज़ा और राहत के जंजाल में फंसाकर वास्तविक समस्याओं से उनका ध्यान हटाया गया और इसमें दलाल किस्म के संगठनों ने विदेशी पैसों के दम पर अपनी  भूमिका निभाई।

-अब भी जब बेहद कम सज़ा पाने के कारण देश-दुनिया में नाराज़गी है चारों ओर घड़ियाली आँसू बहाए जा रहे है, समितियाँ बन रहीं है।इसमें मीड़िया और प्रेस भी शामिल है जिसने 26 सालों तक इस मामलें को जनता की स्मृति से धोने का काम किया।

-आगे और लम्बे समय तक एक और मुकदमें में मामले को ले जाने के कोशिशें हो रहीं हैं, ताकि तब तक तमाम दोषी मर-खप जाएँ और मामला शांत हो जाए।

यह सब कुछ नहीं होता अगर गैस पीड़ितों को एक सशक्त आंदोलन अस्तित्व में होता। भोपाल की गैस पीड़ित आम जनता को यदि सही तरह से संगठित किया जाता तो ना गैस पीड़ितों में दलाल संगठन पनप पाते, ना राजनैतिक दलों द्वारा मामले को दबाने के प्रयास हो पाते, ना सरकारी मशीनरी को मनमानी करने की छूट मिल पाती और ना ही शासन-प्रशासन के स्तर पर देशदोह श्रेणी का अपराध करने की हिम्मत होती।


मंगलवार, 8 जून 2010

भोपाल गैस त्रासदी-कानून का रास्ता पकड़ने वाले जन आंदोलनों के लिए महत्वपूर्ण सबक


26 साल के लम्बे इन्तज़ार के बाद आखिर भोपाल गैस त्रासदी के अपराधियों पर चल रहे मुकदमें का अपेक्षित फैसला आ गया। जिस गंभीर आपराधिक मामले में राज्य और केन्द्र सरकार की एजेंसियाँ शुरु से ही अपने पूँजीवादी वर्ग चरित्र के अनुरूप अपने साम्राज्यवादी आंकाओं को बचाने में लगी थी, उसका हश्र इससे कुछ जुदा होता तो ज़्यादा आश्चर्य की बात होती।
भोपाल गैस त्रासदी उन्ही दिनों की बात है जब भूमंडलीकरण के साम्राज्यवादी षड़यंत्र के रास्ते अमरीका और दीगर मुल्क दुनिया के गरीब मुल्कों में पांव पसारने पर आमादा हो गए और इससे हमारे देश के पूँजीपतियों को भी दुनिया के दूसरे देशों में अपने पांव पसारने का मौका मिला। ऐसे में हज़ारों लोगों की बलि लेने वाली और लाखों लोगों को जीवन भर के लिए बीमार बना देने वाली अमरीकी कम्पनी यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन और उसकी भारतीय ब्रांच यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड को नाराज़ करके तत्कालीन राजीव गांधी सरकार भारतीय पूँजीपतियों की विश्वव्यापी कमाई को बट्टा कैसे लगा सकती थी ? लिहाज़ा भोपाल की आम जनता को निशाना बनाया गया। गैस त्रासदी के भयानक अपराध से संबंधित किसी भी तरह की न्यायिक कार्यवाही को बाकायदा  कानून पास करके केन्द्र सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और भोपाल की आम जनता की आवाज को कुंद कर दिया। फिर शुरू हुआ अपने ही देश के नागरिकों के साथ दगाबाजी का लम्बा कार्यक्रम जिसका प्रथम पटाक्षेप कल भोपाल की अदालत में हुआ। एक दो पटाक्षेप हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में और होंगे और भोपाल की जनता की आवाज़ को पूरी तौर पर दमित कर दिया जायगा। यही पूँजीवादी व्यवस्था का चरित्र है।
    मगर आज यह सबसे बड़ा प्रश्न है कि क्या पूँजीवादी व्यवस्था के इस चरित्र को भोपाल की आम जनता और उनका आंदोलन चलाने वाले जन संगठन समझ नहीं पाए ? क्या आज से 26 साल पहले कानून और प्रशासन का चरित्र कुछ अलग था ? क्या उस समय सरकार, प्रशासन, कानून में बैठे लोग आम जनता के हितैशी हुआ करते थे ? जवाब है नहीं । फिर क्यों जनसंगठनों ने न्यायिक लड़ाई पर भरोसा करके एक उभरते सशक्त जनआंदोलन को कानून और अदालत में ले जाकर कुंद कर दिया ?
क्या कल के इस ऐतिहासिक जनविरोध फैसले से यह स्पष्ट नहीं है कि इस देश की व्यवस्था की मशीनरी के किसी भी कलपुर्जे को, देश की आम जनता की ना तो कोई फिक्र है और ना ही उसके प्रति किसी प्रकार की प्रतिबद्धता की चिंता। देश के कानून, शासन, प्रशासन, और किसी भी संस्थान को आम जनता के गुस्से से कोई डर नहीं लगता, क्योंकि आम जनता को सही मायने में संगठित करने का काम अब इस देश कोई नहीं करता,  और जब आम जनता संगठित ना हो, सही राजनैतिक चेतना से लैस ना हो तो उसके बीच ऐसे जनविरोधी संगठन भी पनपते हैं जो जन आंदोलनों को जनतांत्रिक आंदोलन का नाम देकर  अदालतों में ले जाकर फंसा देते हैं ताकि मुकदमा खिचते खिचते इतना समय ले लें कि किसी को ध्यान ही ना रहे कि हम लड़ क्यों रहे थे।
भोपाल में भी कमज़ोर जन आन्दोलन का नतीजा 26 साल के लम्बे इन्तज़ार के बाद महज़ कुछ सालों की सज़ा पाकर, जमानत पा गए उन अपराधियों और भोपाल के ठगे गए गैस पीडितों के चेहरों से पढ़ा जा सकता है।
उम्मीद है अब भी कोर्ट-कचहरी, प्रेस-मीडिया, और छद्म आंदोलन के छाया से निकलकर गैस पीड़ित और उनके संगठन कोई ताकतवर जन आन्दोलन खड़ा करने की तैयारी करेंगे, ताकी आगे होने वाले फैसलों को जनता के हित में प्रभावित किया जा सके।    

और भी पढ़े- भोपाल  गैस पीड़ितो के साथ विश्वासघात