विवेकानन्द उवाच-विवेकानंद जयन्ती 12 जनवरी पर...............
‘‘धर्म का काम सामाजिक नियमों का निर्माण करना नहीं है। सामाजिक नियम आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न हुए हैं। धर्म की यह भयानक भूल थी कि उसने सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप किया । यह सत्य है कि हम चाहते हैं कि धर्म समाज सुधारक न हो और साथ साथ हम इस बात पर भी बल देते है कि धर्म को सामाजिक नियम निर्माता होने का कोई अधिकार नहीं। अपने हाथ अलग रखो। अपने को अपनी सीमाओं में रखो तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।’’
‘‘मेरे बारे में सिर्फ इतना ही जान लेना कि मैं किसी के कथनानुसार नहीं चलूँगा। मेरे जीवन का क्या व्रत है, यह मैं जानता हूँ। किसी जाति विषेष के प्रति न मेरा तीव्र अनुराग है न घोर विद्वेष ही है। मैं जैसे भारत का हूँ, वैसे ही समग्र जगत का हूँ। इस विषय को लेकर मनमानी करना व्यर्थ है।’’
‘‘धार्मिक उन्मत्तता, साम्प्रदायिकता था कट्टरपन की विभीषिकाओं से यह सुन्दर पृथ्वी घिरी हुई है। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, इन्सान के लहू से धरती को लाल कर दिया है, सभ्यता का नाश किया है एवं सम्पूर्ण जाति को निराशा में डुबों दिया है।’’
‘‘स्वामी विवेकानंद’’
सुन्दर
जवाब देंहटाएंविवेकानंद के वैचारिक जगत के इस पक्ष को, इस दिशा को सामने लाने की विशेष जरूरत है।
जवाब देंहटाएंवे भारतीय चिंतन की स्वाभाविक विकास प्रक्रिया के प्रमुख स्तंभ हैं।
अच्छी प्रस्तुति। शुक्रिया।