कोई समाज एक खास समय में जिस तरह के आचार-विचार, गुणों-लक्षणों, नीति-नैतिकता, मूल्यबोध, संस्कार और रूचियों का प्रकटीकरण करता है वह उस समय की संस्कृति कहलाती है। इसका सीधा संबंध उस समय की सामाजिक व्यवस्था से है । दुर्भाग्य से हर युग में यह होता है कि जो सामाजिक व्यवस्था कालातीत हो चुकि होती है उस समय के मूल्यबोध एवं संस्कार बदली हुई सामाजिक व्यवस्था में भी लम्बे समय तक एक नशे के समान छाए रहते है एवं सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करते रहते है । संस्कृतियां सामाजिक परिस्थितियों के बदलाव के साथ ही बदलाव की मांग करती है लेकिन यह बदलाव अपसंस्कृति की शक्ल में ना हो जाए यहीं एक संस्कृति कर्मी की मुख्य चुनौती होना चाहिए ।
मंगलवार, 24 नवंबर 2009
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बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही गई है।
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