शनिवार, 28 नवंबर 2009

विवाह एक नैतिक बलात्कार


जैसा कि अपेक्षित था वैसा ही हुआ। भोपाल की सड़कों पर ‘ऋषि’ अजय दास की पुस्तक ‘‘विवाह एक नैतिक बलात्कार’’ के, तथाकथित लव गुरू प्रोफेसर मटुकनाथ और उनकी प्रेमिका शिष्या द्वारा विमोचन के होर्डिंग देखकर ही यह समझ लिया गया था कि भारतीय संस्कृति के रक्षकों के सक्रिय होने का वक्त आ गया है। वही हुआ। दिनांक 27.11.2009 को भोपाल के रवीन्द्र भवन परिसर में पुस्तक के लेखक ऋषि अजय दास को मुँह काला कर मारा-पीटा गया और विमोचन करने आए प्रो. मटुकनाथ एवं जूली को भी जूते मारने की कोशिश की गई। जिस प्रदेश में भारतीय संस्कृति के रक्षकों की सरकार हो वहाँ इससे कम की क्या उम्मीद की जा सकती है।
इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान समय में ‘विवाह’ नाम के एक नैतिक आवरण के पीछे काफी कुछ अनैतिक चल रहा है जिसे ठीक कर एक सुशिक्षित प्रजातांत्रित समतामूलक समाज के योग्य बनाए जाने का सामाजिक संघर्ष बेहद जरूरी है। मगर ‘‘विवाह एक नैतिक बलात्कार’’ जैसे शीर्षक से किताब लिखकर विवादित प्रो. मटुकनाथ-जूली से उसका विमोचन कराया जाना भी गले से नीचे उतरने वाली बात नहीं है। यह प्रोपोगंडा के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडों जैसा ही कुछ प्रतीत होता है।
हालाँकि पुस्तक के अन्दर क्या लिखा है यह पढ़ने का सौभाग्य अभी नहीं मिला है परंतु शीर्षक से स्पष्ट होता है कि लेखक विवाह के बाद पुरुष को मिल गए स्त्री पर बलात्कार के वैध लायसेंस के बहाने स्त्री पर अत्याचार के बारे में कुछ कहना चाहते है। इससे यह भी प्रतिध्वनित होता है कि ‘विवाह’ संस्था एक निकृष्ठ किस्म की व्यवस्था है । प्रो. मटुकनाथ एवं जूली की उपस्थिति से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने जो भी किया वह शुद्व रूप से नैतिक कारोबार है।
पुस्तक पढ़ने के पहले कुछ भी कहना हालाँकि जल्दबाज़ी होगी परन्तु कुछ बातों पर टिप्पणी की जाने में कोई हर्ज नहीं है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है विवाह के संबंध में । विवाह में आज भले ही कितना भी अनैतिक कारोबार आ घुसा हो परन्तु यह अब भी सामाजिक दृष्टि से एक उचित व्यवस्था है। बेमेल विवाह, लिव इन रिलेशन, समलैंगिक विवाह, अविवाहित रहकर आजीवन भ्रष्ट यौनाचारपूर्ण जीवन जीना यह सब एक अराजकतापूर्ण आसामाजिक नैतिक व्यवहार के उदाहरण हैं। विवाह में चाहे वह अरेंज विवाह हो या प्रेम विवाह, समान कर्म, समान विचार, समान आचार-व्यवहार, समान चिंतन सीमेंटिंग फेक्टर का कार्य करते हैं जिसको ध्यान में रखा जाना आवश्यक है। इसके अभाव में पूरा जीवन एक दूसरे के साथ संघर्ष करते हुए एक अभिशाप की तरह गुजारना कोई समझदारी की बात नहीं है। बलात् रति क्रिया जिसे बलात्कार कहा जाता है, को सिरे से खारिज किये जाने की जरूरत है चाहे वह विवाह संस्था के अन्तर्गत हो या इसके बाहर गली-गली में, जैसा कि इन दिनों देखा जा रहा है।
प्रो. मटुकनाथ-जूली प्रकरण को इससे जोड़कर देखा जाना भी जरूरी है। प्रेम के नाम पर बाप-बेटी की उम्र के जोड़े को यौनाचार की इजाज़त नहीं दी जा सकती क्योंकि इसमें कोई सामाजिक हित स्पष्ट नहीं होता। ऐसे रिश्ते कहीं ना कहीं परिवार की अवधारणा को प्रभावित करते हैं। परिवार से उच्चतर संस्था का आविर्भाव मानव समाज में अभी हुआ नहीं है। बेमेल प्रेम में कोई सुंदरता प्रतीत नहीं होती है।
अंत में, उन तथाकथित संस्कृति रक्षकों की हरकत को एक प्रजातांत्रित समाज की दृष्टि से गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अनर्गल, अवैज्ञानिक अनैतिक विचार-चिंतन जहाँ उचित नहीं है वहीं बात-बात पर लात-घूसे, जूते चलाकर संस्कृति की रक्षा का ढोंग करना भी नाजायज़ है। स्पष्ट तौर पर यह फासिस्ट तरीका है जिसके लिये एक प्रजातांत्रिक समाज में कोई स्थान नहीं है। समाज में खुले आम चल रहे कई सारे अनैतिक कार्य-व्यापारों को देखकर भी ये संस्कृति के रक्षक चुप रहते हैं परन्तु जैसे ही कोई बौद्धिक गतिविधि उनके घिसे-पिटे, पुरातन, पतनशील वैचारिक संसार के आड़े आती हैं, जिसमें औरतों के लिए हिटलर की तरह ही - ‘‘घर के अन्दर जाओं अच्छी माँ बनो’’ जैसे विचार पालित-पोषित हैं, वे तुरंत अपने लात-घूसे और कालिख लेकर उपस्थित हो जाते हैं। इनकी इस फासिस्ट प्रवृत्ति के खिलाफ प्रगतिशील विचारों वाले जन-साधारण को भी सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है।
इस तुरत प्रतिक्रिया में कई बिन्दुओं पर संक्षिप्त में चर्चा की मजबूरी थी, इसमें निहित अलग-अलग मुद्दों पर फिर चर्चा की जावेगी, तब तक यह दृष्टिकोण आपके हवाले।

12 टिप्‍पणियां:

  1. भोपाल की सड़कों पर इसके बड़े और बोल्ड होर्डिंग देख कर लगा कि किताब के लिए ऐसी जबरदस्त मार्केटिंग... और आज यह समाचार जान कर लगता नहीं कि ये किताब को हिट कराने का कोई नुस्ख़ा हो???

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  2. रवि रतलामी जी की बात सही लगती है ।

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  3. यह ऋषि अजयनाथ की मार्केटिंग का प्रहसन था। इस प्रहसन के पात्र थे। मटुकनाथ-जूली, भारतीय संस्कृति के भोपाली रक्षक, पुलिस और मीडिया। प्रहसन सफल रहा। बाद में ब्लाग जगत भी उस में जा जुड़ा।

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  4. भाई रवि रतलामी की बात से पूरी तरह से सहमत। ऐसे गुरुओं पर कभी कभी जनता गरु(भारी)पड़ जाती है।
    डॉ महेश परिमल

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  5. एक बहुत ही सधा हुआ लेख। इस विषय पर सुबह से बहुत कुछ पढ़ा लेकिन, इतना सटीक और नपा तुला किसी ने नहीं लिखा।

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  6. मारकेटिंग का यह अच्छा तरीका निकाला... हल्ला हुआ तो अधिक प्रचार... अधिक प्रचार तो अधिक बिक्री..:)

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  7. दो वयस्कों के बीच किसी भी सम्बन्ध में दखल देना कहाँ की सभ्यता और संस्कृति है. वे जैसे रहना चाहें रहें, उनकी मर्ज़ी, इतने सारे गुंडे बदमाश, भष्टाचारी, निक्कमे नेता-अधिकारी, व्यभिचारी बाबा-पुजारी-पण्डे, ईश्वर के नाम पर लूटने वाले लोग तो शायद मटुक जुली से कम गंदगी फैला रहे हैं समाज में!

    पहले इन दोनों को रस्ते से हटाना ज़रूरी है, वर्ना देश डूब जायेगा. ये आतंकवादियों और माफिया से भी बड़ा खतरा हैं

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  8. प्रो. मटुकनाथ-जूली प्रकरण को इससे जोड़कर देखा जाना भी जरूरी है। प्रेम के नाम पर बाप-बेटी की उम्र के जोड़े को यौनाचार की इजाज़त नहीं दी जा सकती क्योंकि इसमें कोई सामाजिक हित स्पष्ट नहीं होता। ऐसे रिश्ते कहीं ना कहीं परिवार की अवधारणा को प्रभावित करते हैं। परिवार से उच्चतर संस्था का आविर्भाव मानव समाज में अभी हुआ नहीं है। बेमेल प्रेम में कोई सुंदरता प्रतीत नहीं होती है।

    ठीक लिखा है आपने.....

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  9. अच्छी तात्कालिक प्रतिक्रिया और विश्लेषण।
    कुछ बिंदुओं पर बात आगे बढ़ाई जा सकती है, पर लगता है कि तात्कालिक परिदृष्य में वह व्यर्थ है। आपने कई बेहतरीन इशारे किए हैं और आम-चिंतन में हलचल के लिए दूसरे पहलू सामने रखें हैं।
    अब इनकन्वियेंट भी एक महत्वपूर्ण इशारा कर गये हैं।

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  10. ये लोग आदर्श प्रेमी के रूप में स्थापित हो रहे है ,जो की गलत है
    हंगामा न हुआ होता तो बिना विवाह के इनकी प्रेम लीला चल ही रही थी। अपने मनपसंद साथी को बेशक चुनिये, लेकिन अपने सामाजिक दायित्वों को कैसे भूल सकते हैं, आज इनके परिवार के लोगों पर क्या बीत रही होगी ।

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  11. आप ने एकदम सटीक बात नपे तुले अन्दाज में लिखी है । मैं भाई रवि रतलामी जी की बात से पूरी तरह सहमत हूं । यह सस्ती मार्केटिंग स्ट्रेटजी है । इसमें ऐसे हालात जान बूझ कर बनाये जाते हैं जिससे हंगामा हो । हंगामा करवाने वाले पूरा इन्तजाम करते हैं । टी वी कैमरे बुलाये जाते हैं, हंगामा करने वाले भी बुलाये जाते हैं । पांच मिनट का तमाशा होता है और सब अपने अपने रास्ते चले जाते हैं । बाकी समय अपने घर बैठ कर चैनल बदल बदल कर पब्लीसिटी का आनन्द लिया जाता है । अब ब्लाग दुनिया भी इस झांसे से अछूती नही रही ।

    इस सस्ती पब्लीसिटी से बड़े-बड़े महारथी भी फ़ायदा उठा रहे हैं, जैसे शाहरुख खान ने अमेरिका में अपनी सुरक्षा जांच को लेकर किया था, जबकि वे इसके पहले कई बार अमेरिका बिना किसी परेशानी के जा चुके थे और उस घटना के बाद भी जा रहे हैं । वे तभी बचाव की मुद्रा में आये जब निगेटिव पब्लीसिटी होनी शुरू हुई कि वे यह सब अपनी फ़िल्म के प्रचार के लिये कर रहे हैं ।


    इस तरह की चलाकी को पहचानने की ज़रूरत है और साथ ही ऐसे लोगों को फ़ायदा नही उठाने देना चाहिये, चाहे संस्कॄति की रक्षा करने वाले हों या स्वतन्त्र अभिव्यक्ति वाले ।

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  12. मटुक जूली जो भी किताब बेचने के लिए उपयुक्त तरीका मिले अपना लो
    साफ़ तौर पर जिसका चेहरा आपके प्रोडक्ट को बिकवा दे उसको बुला लो
    विवादित को बुलवाओ सफलता चरण चूमेगी हजूर मटुक जूली के बहाने
    उनने भी अपना काला रंग खपा लिया.

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