शनिवार, 16 जनवरी 2010

सर्वशक्तिमान ईश्वर की झूठी अवधारणा को ध्वस्त करने के लिए खगोलशास्त्र एवं खगोलीय घटनाओं का वैज्ञानिक विष्लेषण आज की महती आवश्यकता है


सहस्त्राब्दि का सबसे लम्बा सूर्यग्रहण सम्पन्न हुआ । एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना के हम प्रत्यक्षदर्शी बने मगर इसके साथ ही साथ बड़े पैमाने पर तर्कविहीन, रूढ़ीवादी, अवैज्ञानिक अंधविश्वास जनित कार्यव्यापार के भी मूक दर्शक बने, जैसे कि हमेशा ही ऐसी घटनाओं के समय बनते आएँ हैं। जब भी कोई इस प्रकार की घटना घटित होती है हमें भारतीय समाज की दुर्दशा का मार्मिक नज़ारा देखने को मिलता है, जब अनपढ़ तो अनपढ़, समाज को आगे ले जाने के लिए जिम्मेदार पढे़-लिखे लोग भी अपनी तर्कशक्ति को ताक पर रखकर बुद्धिहीनों की तरह आचरण करने लगते हैं। हज़ारों-लाखों लोगों के इस प्रकार कठपुतलियों की तरह व्यवहार करते देख उनकी तुलना उन पशु-पक्षियों से करने को मन करता है जो सूर्यग्रहण के अंधकार से भ्रमित होकर अपने नीड़ों को लौटने लगते हैं, या जिस प्रकार गाय-बकरियाँ शाम होने के भ्रम में वापस घर लौटने लगतीं हैं। ज्ञान-विज्ञान के अभाव में उनका यह आचरण आश्चर्य पैदा नहीं करता लेकिन पढ़े लिखे मनुष्यों के पास प्रकृति से संबंधित अंधिकांश ज्ञान उपलब्ध होने के बावजूद ऐसा व्यवहार आश्चर्य के साथ-साथ दुखी भी करता है।


हम उन लोगों की बात कर रहे हैं जिन्होंने ज्ञान-विज्ञान से लैस होने के लिए अपना मूल्यवान समय तो ज़ाया किया है परन्तु उसका उपयोग करने का जज़्बा उनमें पैदा ही नहीं हो सका। ऐसे लाखों लोग हमेशा की तरह सूर्यग्रहण का तथाकथित सूतक शुरू होते ही सारी मानवीय गतिविधियों पर रोक लगाकर घर में दुबक कर बैठ गए। सूर्यग्रहण शुरू होते ही खाना-पीना प्रतिबंधित कर व्रत सा धारण कर लिया और कुछ लोग सभी खाने-पीने के पदार्थों में तुलसी पत्ता डालकर उन्हें किसी अज्ञात दुष्प्रभाव से बचाने की कवायद में लग गए। सूर्यग्रहण समाप्त होने पर तथाकथित मोक्ष की बेला में बीमार कर देने वाले बर्फीले ठंडे नदियों-तालाबों के पानी में उतरकर पवित्र होने के विचित्र भाव से आल्हादित होने लगे। मंदिरों में एकत्रित हो मूर्तियों के सामने नतमस्तक होकर संकट से उबारने के लिए की गुहार लगाने वाले सीधे-साधे अशिक्षित ग्रामीणों की बात अलग है, परन्तु यहीं सब करते हुए जब पढ़े-लिखे लोगों की जमात को देखना पड़ता है तो हमारे समाज के एक दुखद पहलू का सामना करते हुए बरबस आँखों में आँसू आ जाते हैं। पढ़े-लिखों का दयनीय चेहरा तब और सामने आने लगता है जब वे अपने इन तमाम अंधविश्वासी कृत्यों को उचित ठहराने के लिए इस अंधाचरण पर स्वरचित अवैज्ञानिक अवधारणाओं का मुलम्मा चढ़ाने का प्रयास करने लगते हैं।

दरअसल यह पूरी तरह से राज्य का विषय है। ज्ञान-विज्ञान की प्रगति के इस दौर में किसी भी राज्य की यह जिम्मेदारी होती है कि वह अपने नागरिकों को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकाले। रूढ़ीवाद, अंधविश्वास एवं अंधतापूर्ण आचरण पर अंकुश लगाए, उन्हें वैज्ञानिक विचारधारा से लैस करे, लेकिन देखने में आता है कि इन सब मसलों पर राज्य की भूमिका एकदम निराशाजनक होती है। निराशाजनक शब्द शायद ठीक नहीं है.......राज्य की बागडोर अगर अंधविश्वासी, कूपमंडूक लोगों के हाथों में हो तो क्या उम्मीद की जा सकती है। राज्य के वर्ग चरित्र को देखकर यह कहा जा सकता है कि राज्य जनमानस के बीच अंधविश्वासों, रूढ़ीवाद, अवैज्ञानिक चिंतन को पालने-पोसने बढ़ावा देने में लगा हुआ है, तभी सूर्यग्रहण जैसी महत्वपूर्ण खगोलीय घटना के बारे में ज्ञानवर्धन की कवायद करने की बजाय किसी अज्ञात भय संकट के वातावरण का सृजन करते हुए स्कूल-कालेजों के बच्चों को छुट्टी दे दी जाती है।

हमारा मानना है कि खगोल विज्ञान वह महत्वपूर्ण विज्ञान है जिसका समुचित और सही-सही ज्ञान मानव समाज को सत्य की खोज की भटकन से मुक्त कर सही दिशा सही रास्ते की ओर उन्मुख करता है जो कि बेहद जरूरी है। विषेशकर इस स्थिति में जब आज भी पृथ्वी को शेषनाग के फन पर रखी होने की गप्प पर विश्वास करने वालों और सूर्यग्रहण को ईश्वरीय प्रकोप मानने वालों की हमारे देश में कोई कमी नहीं है। पृथ्वी, ब्रम्हांड, एवं मानव समाज की समस्त गतिविधियों को संचालित करने वाले सर्वशक्तिमान ईश्वर की झूठी अवधारणा को ध्वस्त करने के लिए खगोलशास्त्र एवं खगोलीय घटनाओं का वैज्ञानिक विष्लेषण आज की महती आवश्यकता है, वर्ना सूर्यग्रहण-चन्द्रगहण पर उपवास कर संकट से मुक्ति की कामना करने वाले पढ़े-लिखों की संख्या बढ़ती ही रहेगी और भारतीय समाज कभी भी अज्ञान के अंधकार से मुक्त नहीं हो पाएगा।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपके अंतिम वाक्‍या को मैने थोडा सा परिवर्तित कर दिया है , जो सत्‍य है और अंधविश्‍वास को समाप्‍त करने की पूरी ताकत रखता है . वह इस प्रकार है ....
    पृथ्वी, ब्रम्हांड, एवं मानव समाज की समस्त गतिविधियों को संचालित करने वाले खगोलीय घटनाओं का वैज्ञानिक विष्लेषण आज की महती आवश्यकता है, वर्ना सूर्यग्रहण-चन्द्रगहण पर उपवास कर संकट से मुक्ति की कामना करने वाले पढ़े-लिखों की संख्या बढ़ती ही रहेगी और भारतीय समाज कभी भी अज्ञान के अंधकार से मुक्त नहीं हो पाएगा।

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  2. अच्छा विश्लेषण।
    हम जानते हैं कि सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है किन्तु इसी बहाने कभी कभी भगवान को याद करके 6 ... 7 घण्टे व्रत रख लेते है, शरीर और मन को शान्ति मिलती है। ईश्वर को किसी ने देखा नहीं है किन्तु शैतान को मन में जगह देने से अच्छा है कि ईश्वर में विश्वास किया जाए। विज्ञान अपनी जगह है और आस्था विश्वास अपनी जगह है।

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