आजकल टी.वी पर एक धारावाहिक के ज़रिए देश के एक सदियों पुराने अंधविश्वास को भुनाकर पैसा कमाने की जुगत चल रही है। पूर्वजन्म की यादों को वापस लाने के निहायत अवैज्ञानिक, झूठे और आडंबरपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिए लोगों में इस बचकाने अंधविश्वास को और गहरे तक पैठाने की कोशिश की जा रही है। यह कहना तो बेहद मूर्खतापूर्ण होगा कि आम जनता में गहराई तक मार करने वाले एक महत्वपूर्ण मीडिया पर ऐसे अवैज्ञानिक कार्यक्रमों को प्रसारित करने की अनुमति आखिर कैसे दे दी जाती है ! यह मामला नियम-कानून, और सांस्कृतिक-सामाजिक नीतियाँ बनाने वालों की मूढ़ता का भी नहीं है। दरअसल यह तो एक सोचे-समझे ब्रेनड्रेन कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसमें षड़यंत्रपूर्वक आम जन साधारण में वैचारिक अंधता पैदा करने, समझदारी और तर्कशक्ति को कुंद कर देने की जनविरोधी कार्यवाही अंजाम दी जाती है, ताकि लोगों का ध्यान देश की मूल समस्याओं की ओर से हटाया जा सके।
पूर्वजन्म और इसके मनगढन्त किस्सों पर इन दिनों पढ़े-लिखे, विज्ञान की शिक्षा हासिल किए, समझदार लोग भी ना केवल आँख मूँदकर विश्वास करते हैं, बल्कि इस रहस्यपूर्ण मामले को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की बजाय मूर्खतापूर्ण तरीके से यह समझाने की कोशिश करने लगते हैं कि ‘‘आजकल विज्ञान भी इसे मानता है’’। इसी से पता चलता है कि विज्ञान के प्रति भी लोगों में किस कदर गलत और भ्रामक समझकारी का बोल-बाला है, जो कि हमारे समुचित सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के रास्ते में बहुत बड़ा रोड़ा है।
जीव विज्ञान के अनुसार ‘याददाश्त’ एक गूढ सरंचना वाले पदार्थ ‘मस्तिष्क’ का एक विशेष गुण होता है जो कि मानव शरीर के खात्मे के साथ ही समाप्त हो जाता है। दुनिया भर में मृत्यु के बाद मृत शरीर को भिन्न-भिन्न तरीकों से नष्ट कर दिया जाता है, इसके साथ ही मस्तिष्क नाम के उस ‘पदार्थ’ का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। जब याददाश्त को संचित रखने वाला मूल पदार्थ ही नष्ट हो जाता है (हिन्दुओं में दाह-संस्कार में वह राख में तब्दील हो जाता है) तो फिर याददाश्त के वापस लौटने का प्रश्न ही कहाँ उठता है, जो तथाकथित रूप से पुनर्जन्म बाद वापस उमड़ आए।
हमें पता है, लोग कहेंगे ‘आत्मा’ अमर है और एक मनुष्य के शरीर से मुक्त होने के बाद जब वह किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करती है तो अपने साथ वह पुरानी याददाश्त भी ले आती है। जबकि इसके लिए तो उस ‘सूक्ष्म आत्मा’ के पास वह मस्तिष्क नाम का पदार्थ भी होना चाहिए जो कि पूर्ण रूप से ‘स्थूल’ है। फिर, पुराणों में यह बताया गया है कि चौरासी लाख योनियों के बाद प्राणी को मनुष्य का जन्म मिलता है । इसका अर्थ यह है कि पूर्वजन्म की याद करने वालों को चौरासी योनियों के पूर्व की बातें याद आना चाहिए, लेकिन देखा ये जाता है कि इस तरह की आडंबरपूर्ण गतिविधियों में लोग बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व की ऊलजुलूल बातें सुनाकर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं।
देखा जाए तो पुनर्जन्म से बड़ा झूठ दुनिया में कोई नहीं। इंसान या किसी भी जीवित प्राणी के जैविक रूप से मृत होने के बाद ऐसा कुछ शेष नहीं रह जाता जिसे आत्मा कहा जाता है। ब्रम्हांड में ऐसी किसी चीज़ का अस्तित्व नहीं है जिसका कोई रंग, रूप, गुण, लक्षण, ना हो। जिसकी कोई लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई ना हो, जिसे नापा, तौला, ना जा सकता हो। जिसे जाँचा, परखा, देखा, सूँघा, चखा ना जा सकता हो। गीता के तथाकथित ज्ञान ‘आत्मा अमर है’ का विज्ञान के धरातल पर कोई औचित्य नहीं है ना ही उसके चोला बदलने की कहानी में कोई सत्यता है। एक और बात महत्वपूर्ण है कि इन सब बातों का वैश्विक धरातल पर भी कोई पुष्टीकरण नहीं है। दुनिया की कई सभ्यताओं, संस्कृतियों, परम्पराओं में इन भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है । यदि यह एक सार्वभौमिक सत्य है, तो इसका जिक्र दुनिया भर में समान रूप से होना चाहिए था, और विज्ञान।
आज के समय में जबकि मौजूदा जटिल सामाजिक परिस्थितियों में लोगों के अन्दर तर्कशक्ति का विकास करने की सख्त जरूरत है उन्हें पूर्वजन्म, पुनर्जन्म जैसी बकवास, अतार्किक बातों में उलझाकर उनकी चेतना के वैज्ञानिक विकास को अवरुद्ध करने की कोशिश की जा रही है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के हिमायती लोगों को ऐसे कुत्सित प्रयासों के खिलाफ समवेत आवाज़ उठाना चाहिए।
पूर्वजन्म और इसके मनगढन्त किस्सों पर इन दिनों पढ़े-लिखे, विज्ञान की शिक्षा हासिल किए, समझदार लोग भी ना केवल आँख मूँदकर विश्वास करते हैं, बल्कि इस रहस्यपूर्ण मामले को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की बजाय मूर्खतापूर्ण तरीके से यह समझाने की कोशिश करने लगते हैं कि ‘‘आजकल विज्ञान भी इसे मानता है’’। इसी से पता चलता है कि विज्ञान के प्रति भी लोगों में किस कदर गलत और भ्रामक समझकारी का बोल-बाला है, जो कि हमारे समुचित सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के रास्ते में बहुत बड़ा रोड़ा है।
जीव विज्ञान के अनुसार ‘याददाश्त’ एक गूढ सरंचना वाले पदार्थ ‘मस्तिष्क’ का एक विशेष गुण होता है जो कि मानव शरीर के खात्मे के साथ ही समाप्त हो जाता है। दुनिया भर में मृत्यु के बाद मृत शरीर को भिन्न-भिन्न तरीकों से नष्ट कर दिया जाता है, इसके साथ ही मस्तिष्क नाम के उस ‘पदार्थ’ का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। जब याददाश्त को संचित रखने वाला मूल पदार्थ ही नष्ट हो जाता है (हिन्दुओं में दाह-संस्कार में वह राख में तब्दील हो जाता है) तो फिर याददाश्त के वापस लौटने का प्रश्न ही कहाँ उठता है, जो तथाकथित रूप से पुनर्जन्म बाद वापस उमड़ आए।
हमें पता है, लोग कहेंगे ‘आत्मा’ अमर है और एक मनुष्य के शरीर से मुक्त होने के बाद जब वह किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करती है तो अपने साथ वह पुरानी याददाश्त भी ले आती है। जबकि इसके लिए तो उस ‘सूक्ष्म आत्मा’ के पास वह मस्तिष्क नाम का पदार्थ भी होना चाहिए जो कि पूर्ण रूप से ‘स्थूल’ है। फिर, पुराणों में यह बताया गया है कि चौरासी लाख योनियों के बाद प्राणी को मनुष्य का जन्म मिलता है । इसका अर्थ यह है कि पूर्वजन्म की याद करने वालों को चौरासी योनियों के पूर्व की बातें याद आना चाहिए, लेकिन देखा ये जाता है कि इस तरह की आडंबरपूर्ण गतिविधियों में लोग बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व की ऊलजुलूल बातें सुनाकर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं।
देखा जाए तो पुनर्जन्म से बड़ा झूठ दुनिया में कोई नहीं। इंसान या किसी भी जीवित प्राणी के जैविक रूप से मृत होने के बाद ऐसा कुछ शेष नहीं रह जाता जिसे आत्मा कहा जाता है। ब्रम्हांड में ऐसी किसी चीज़ का अस्तित्व नहीं है जिसका कोई रंग, रूप, गुण, लक्षण, ना हो। जिसकी कोई लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई ना हो, जिसे नापा, तौला, ना जा सकता हो। जिसे जाँचा, परखा, देखा, सूँघा, चखा ना जा सकता हो। गीता के तथाकथित ज्ञान ‘आत्मा अमर है’ का विज्ञान के धरातल पर कोई औचित्य नहीं है ना ही उसके चोला बदलने की कहानी में कोई सत्यता है। एक और बात महत्वपूर्ण है कि इन सब बातों का वैश्विक धरातल पर भी कोई पुष्टीकरण नहीं है। दुनिया की कई सभ्यताओं, संस्कृतियों, परम्पराओं में इन भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है । यदि यह एक सार्वभौमिक सत्य है, तो इसका जिक्र दुनिया भर में समान रूप से होना चाहिए था, और विज्ञान।
आज के समय में जबकि मौजूदा जटिल सामाजिक परिस्थितियों में लोगों के अन्दर तर्कशक्ति का विकास करने की सख्त जरूरत है उन्हें पूर्वजन्म, पुनर्जन्म जैसी बकवास, अतार्किक बातों में उलझाकर उनकी चेतना के वैज्ञानिक विकास को अवरुद्ध करने की कोशिश की जा रही है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के हिमायती लोगों को ऐसे कुत्सित प्रयासों के खिलाफ समवेत आवाज़ उठाना चाहिए।
सही कहा आपने, यह समाज में फैले अंधविश्वास की फसल को काटने की एक घटिया कोशिश है।
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
Aapka yah sughad lekh pramaan hai aapkee bouddhikta kaa...parantu main aapse aagrah karna chahungi ki aap apne adhyayan ko tanik aur vistaar den aur jaanne ka prayaas karen ki yadi duniya ki itni badi aabaadi is sthool shareer se pare kisi shookshm shareer ka astitv maanti hai to uske is vishwaas ke kya aadhaar hain ????
जवाब देंहटाएंmujhe aasha hai ki aapka gahan aadhyayan duniyan ko bahut se naveen tathyon se awgat hone me sahayak hoga...
bandhu asahmat to hm hain hi ..par sunega koun ?
जवाब देंहटाएंसचमुच यह तो हद ही है -मीडिया और खास कर दृश्य मीडिया कितना गैर जिम्मेदार होता जा रहा है !
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